इस बरस दिवाली के दियों संग
कुछ ख़त भी जल गये
कुछ यादों की लौ कम हुई
कुछ रिश्ते बुझ गये
भूले बंधनों के चिरागों तले अँधेरे जो थे
वो मिट गये
बनके बाती जब जले वो रैन भर
सारे शिकवे जो थे संग ख़ाक हो गये
उनकी उलफ़त का ये आलम है
के कोरे कागज़ पे भी ख़त पढ़ लिया करतें हैं
ज़िन्दगी ऐसी गुलिस्तां बन गयी उनके प्यार में
के कागज़ के फूलों में ख़ुशबू ढूँढ लिया करतें हैं
हम तो फिर भी आशिक़ हैं
मानने वाले तो पत्थर में ख़ुदा को ढूँढ लिया करतें हैं