Thursday, February 19, 2015

Yaari



यादों के लम्बे पाँव अकसर 
रात की चादर के बाहर पसर जातें हैं
आवारा, बेखौफ़  ये हाल में  
माज़ी को तलाशा लिया करतें हैं
ख्वाबों में आने वाले  
खुली आँखों में समाने लगतें हैं
फिर एक बार बातों के सिलसिले 
वक्त से बेपरवाह चलतें हैं
वो नादान इश्क की दास्तानें  
वो बेगरज़ यारियाँ
समाँ कुछ अलग ही बँधता है  
जब बिछडे दोस्त मिला करतें हैं
यादों के लम्बे पाँव अकसर 
रात की चादर के बाहर पसर जातें हैं


1 comment:

Unknown said...

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