Sunday, October 26, 2014

Diwali

इस बरस दिवाली के दियों संग
कुछ ख़त भी जल गये 
कुछ यादों की लौ कम हुई 
कुछ रिश्ते बुझ गये 
भूले बंधनों के चिरागों तले अँधेरे जो थे
वो मिट गये
बनके बाती जब जले वो रैन भर
सारे शिकवे जो थे संग ख़ाक हो गये

Wednesday, October 15, 2014

उलफ़त (Ulfat)

उनकी उलफ़त का ये आलम है 
के कोरे कागज़ पे भी ख़त पढ़ लिया करतें हैं

ज़िन्दगी ऐसी गुलिस्तां बन गयी उनके प्यार में
के कागज़  के फूलों में ख़ुशबू ढूँढ लिया करतें हैं

हम तो फिर भी आशिक़ हैं 
मानने वाले तो पत्थर में ख़ुदा को ढूँढ लिया करतें हैं